शनिवार, 29 जनवरी 2011

पुस्तक पुनरवलोकन

पुस्तक पुनरवलोकन
पुस्तक ; गीतांजली(हिन्दी)
कवि :रवीन्द्रनाथ टागोर
प्रकशक :राधाकृष्ण प्रकाशन
वर्ष : ३ अप्रैल २००४
पृष्ठ : १६४
विश्वविख्याद कवि ,साहित्यकार , दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टागौर का जन्म ७ मई १८६१ को कोल्कता के सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी स्कूल की पढाई प्रतिष्ठित सएन्ट ज़ेवियर स्कुल में हुई . बारिस्टर बनने की चाहत में उन्होने १८७८ में इंग्लैंड गया .लेकिन १८८० में बिना डिग्री हासिल किये ही वापस आ गये . वे बन्गला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कॄतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगधॄष्टा थे . गीतांजली बंगला में लिखित टागोर की १५७ कविताऒं का संग्रह है.विभिन्न भाषाओं में इसका अनुवाद विद्यमान है.इसका प्रथम प्रकाशन १९१२ में इन्डिया सोसाइटी लन्दन द्वारा किया गया था. हिन्दी में सर्वप्रथम सन १९१४ में गीतांजली का प्रकशन इण्डियन प्रेस इलाहाबाद द्वारा हुआ था. जिनकेलिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला था.गीतांजली शब्द गीत और अंजली के योग से बना है जिसका अर्थ है गीतों का उपहार.इसमॆं १०३ कविताएं है.समर्पण की भावना से ओत प्रोत गीतांजली के माध्यम से रवीन्द्र जी का मानना है कि भगवान किसी आदम बीज की तरह है.कवि केलिए उसका आरंभ प्रेम है और परमात्मा उसका अंत है
"प्रेम ,प्राण,गीत,गन्ध,आभा और पुलक में
आप्लवित कर अखिल गगन को निखिल भुवन को
अमल अमृत झर रहा तुम्हारा अविरल है "
गीतांजली के गीत प्रकृति प्रेम,इश्वर के प्रति निष्ठा और मानवतवादी मूल्यों के प्रति समर्पण की भावनाओं से संपन्न है.
"तुम्हें रखूं !प्रभु अपना सतत बनाए,इतना सा- ही मेरा"मैं " रह जाए.
तुम्हें निखैरता हूं प्रत्येक दिशा में,अर्पित कर सर्वस्व मिलूं मैं तुम से
प्रेम लगाए रखूं सदा तुझमें,इच्छा मेरी इतनी सी रह जाए
तुमें रखूं !प्रभु अपना सतत बनाए."
एक आम आदमी अपने मनोवृत्ति के अनुसार इस काव्य कृति की व्याख्य़ा नहीं कर सकता.यह कृति साधारण कल्पना के परे है.फिर भी यह मानव मन में उथल पुथल मचाता है.प्रस्तुत काव्य में सुन्दर और भौतिक वस्तुओं को प्रतीक के रुप में चुना है.खिलनेवाली कमल,उडनेवाली मधुमक्खियां,अंधकार भरी रात,बादल का गरजना,हवा की गूंज,टिम टिमाते तारे ऎसे असंख्य़ चेष्ट और निष्चेष्ट,सुन्दर और असुन्दर का प्रतीकात्मक प्रयोग इस कृति को अमूल्य बनाते है.अन्य महाकवियों के समान टागोर ने भी इस में अनुप्रास,रुपक,उपमा आदि अलंकारॊं का बहुतायत प्रयोग किया है.कवि के स्थिति व मानसिक अवस्था को पूणः नहीं समझ सकते.
इस कृति के हरेक प्रतीक जैसे बरसात,नदी,फूल,धूप सब मानव के विविध भावों को प्रकट करते है.पढनेवाले हरेक को इसमें अपना प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देते है और अपना स्वर सुनाई देते है.संगीत का खूबसूरत प्रयोग कवि ने इसमें किया है.शायद बचपन से ही कवि,हमारे जीवन में संगीत के महत्व को समझ लिया होगा.कविता का ताल लय के साथ प्रस्तुतीकरण इस की एक महत्वपूर्ण विशेषता है.
ईश्वर का सर्वव्यापी रूप इसमें दिखाई देते है.उनके अनुसार ईश्वर मदिंर और गिरिजाघर में नहीं बल्कि खेत में काम करनेवाले आम जनता के साथ है.
गीतांजली के माध्यम से कवि लोगों के दिल में ग्यान का प्रकाश फैलाते है.इसके सौ से अधिक कविताओं में खॆलनेवाले एक छोटॆ बच्चे के आनन्द से लेकर ईश्वर के प्रति उसकी शिकायत तक दिखाई देते है.समय और स्थान को चुनैती देनेवाली है इसकी हरेक कविताएं.रहस्यवादी कविताओं के संकलन होते हुए भी , यही इसकी लोकप्रियता की वजह है .

अरविन्द टी
नवीं ’अ’
के.वि अडूर,पहली पारी